आज कई सालों बाद,
उनसे यूहीं बात हुई।
मैंने हमेशा की तरह,
खैरियत पूछी।
उन्होंने भी हर बार की तरह,
आसान-सा जवाब दिया।
ना आगे कुछ कहा,
ना कुछ पूछा।
बस, अगर आज,
बात अलग थी;
तो वो इसलिए,
क्योंकि, उन्होंने कई दिनों बाद;
दोस्तों जैसा जवाब दिया,
जो अपना-सा लगा।
जैसे कि कुछ बदल गया
था, उनके भीतर।
आज बात करके
बिल्कुल अहसास
नहीं हुआ,
कि यह रिश्ता
सालों से
बंजर पड़ा था!
यूं थोड़ा मज़ाक
करते हुए,
कुछ अल्फ़ाज़
कह गये अधूरे,
तो कहीं खुद को रोक लिया!
बदल के भी फिर
ना बदले वो,
और एक मैं हूं,
जो एक बार
फिर से फिदा हो गई,
उनके इसी अंदाज पर।
लेखिका: निकिता दुदानी
संपादक: नरेश दुदानी
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